Poetry

 پروین شاکر کی شاعری             ۔ 



اُس کو بھی ہم تیرے کوچے میں گزر آئے ہیں

زندگی میں وہ جو لمحہ تھا سورنے والا



हम ने उसे तेरी राह में पार किया है 

जिंदगी का वो पल जो सुकून देने वाला था 



دکھ اوڑھتے نہیں کبھی جشنِ طرب میں ہم

ملبوس دل کو تن کا لبادہ نہیں کیا


ताराबी के उत्सव में हमें कभी कष्ट नहीं

 होता कपड़े पहने दिल ने शरीर को नहीं पहना




خواب کیا دیکھے کوئی نیند کے انجام کے بعد

کس کو جینے کی ہوس حشر کے ہنگام کے بعد 


नींद खत्म होने के बाद क्या सपना है

क्लेश के बाद कौन जीना चाहता है?



عشق نے سیکھ ہی لی وقت کی تقسیم کہ اب

وہ مجھے یاد تو آتا ہے مگر کام کے بعد 

इश्क ने अब वक्त का बंटवारा सीख लिया है 

मुझे वह याद है लेकिन काम के बाद 



موت وہ ساقی کہ جس کے کبھی تھکتے نہیں ہاتھ

بھرتی جائے گی سدا جام وہ اک جام کے بعد


मौत वो बटलर है जिसके हाथ कभी नहीं 

थकते वह एक ड्रिंक के बाद हमेशा के लिए भर्ती हो जाएगी



تھک کے میں بیٹھ گئی اب مگر اے سایہ طلب

کس کی خیمے پہ نظر جاتی تھی ہرگام کے بعد


थक कर अब मैं बैठ गया, पर छांव माँगता हूँ हरगाम के बाद किसका तम्बू दिखाई देता था?



جو غم ملا ہے بوجھ اٹھایا ہے اس کا خود

سر زیرِبارِساغر و بادہ نہیں کیا

जो दु:ख मिला है, उसने अपना ही बोझ उठाया है उसने समुद्र के नीचे अपना सिर नहीं झुकाया




آمد پہ تیری عطر و چراغ وسبو نہ ہوں

اتنا بھی بود و باش کو سادہ نہیں کیا

अपने परफ्यूम और दीये को आने पर भीगने न दें उन्होंने जीवन को इतना सरल नहीं बनाया



جستجو کھوئے ہُوؤں کی عُمر بھر کرتے رہے

چاند کے ہمراہ ہم ہر شب سفر کرتے رہے 

खोये हुओं को जिंदगी भर ढूंढते रहो हम हर रात चाँद के साथ सफ़र करते थे



راستوں کا علم تھا ہم کو نہ سمتوں کی خبر

شِہر نامعلوم کی چاہت مگر کرتے رہے 

न हम दिशाओं को जानते थे, न ही दिशाओं को जानते थे शहर अज्ञात चाहता था लेकिन करता रहा




ہم نے خود سے بھی چھپایا اور سارے شہر کو

تیرے جانے کی خبر دیوار و دَر کرتے رہے

 हम अपने आप से और पूरे शहर से छुपे हुए थे अपने जाने की खबर सुनाते रहो




وہ نہ آئے گا ہمیں معلوم تھا،اس شام بھی

انتظار اس کا مگر کچھ سوچ کر،کرتے رہے 

हम जानते थे कि वो आज शाम भी नहीं आएंगे इसके लिए प्रतीक्षा करें, लेकिन इसके बारे में सोचते रहें



آج آیا ہے ہمیں بھی اُن اُڑانوں کا خیال

جن کو تیرے زعم میں ، بے بال و پر کرتے رہے


आज हमारे पास उन उड़ानों का भी आईडिया है जो आप, आपकी राय में, बिना जारी रखे



گئے موسم میں جو کھلتے تھے گلابوں کی طرح 

دل پہ اتریں گے وہی خواب عذابوں کی طرح 

पिछले मौसम में खिले गुलाबों की तरह वही ख्वाब तड़प की तरह दिल पर उतरेंगे






وہ سمندر ہے تو پھر روح کو شاداب کرے 

تشنگی کیوں مجھے دیتا ہے سرابوں کی طرح 

समुद्र है तो रूह को तरोताजा कर देगा प्यास मुझे मृगतृष्णा क्यों देती है?


غیر ممکن ہے ترے گھر کے گلابوں کا شمار 

میرے رستے ہوئے زخموں کے حسابوں کی طرح 

घर में गुलाबों को गिनना नामुमकिन रास्ते में मेरे जख्मों के हिसाब की तरह 




یاد تو ہوں گی وہ باتیں تجھے اب بھی لیکن 

شیلف میں رکھی ہوئی بند کتابوں کی طرح  


वो बातें आपको आज भी याद होंगी शेल्फ पर बंद किताबों की तरह 





شوخ ہو جاتی ہے اب بھی تری آنکھوں کی چمک 

گاہے گاہے ترے دلچسپ جوابوں کی طرح 


नम आँखों की रौशनी आज भी जलती है समय-समय पर दिलचस्प उत्तरों की तरह 




ہجر کی شب مری تنہائی پہ دستک دے گی 

تیری خوش بو مرے کھوئے ہوئے خوابوں کی طرح 


हज की रात एकांत में दस्तक देंगे मुर्री तेरी महक एक खोए हुए सपने की तरह है 


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